Monday 3 August 2009

For my friend !

Dear blog
Though I'm late, but I have all the intentions in this world to dedicate a poem to my dear friend. I hope my friend understands me and my feelings. These are really hard times for all of us. I just hope that we all sail through this time safely. Here it goes :

ढाई अक्षर मित्र के
मेरी मित्र ने प्रेम को फिर परिभाषित किया।
मेरी मित्र ने जीवन को फिर प्रवाहित किया॥
जीवन में प्रेम रस का फिर संचार हुआ।
हाँ, कभी मीठा तो कभी खट्टा भी लगा॥
उस मित्र ने ज़िन्दगी की धूप को भी छाँव बना दिया।
उस मित्र ने मेरे गम को भी नम कर दिया॥
उसने कभी धूप में मुझे छाँव नहीं दी।
उसने तो मुझे दूसरे की छाँव बनना सिखा दिया॥
गिर जाने पर, उसकी सांत्वना कभी नहीं मिली।
गिर जाने पर, वह मुझे उठ जाने को कहती रही॥
उसने मुझे अपनी पलकों पर तो संवारा था।
किंतु कांटो से रासता बनाना भी सिखाया था॥
उसने असफलता को एक नया ही नाम दिया था।
एक नई शुरूआत कहकर मेरा जीवन आबाद किया था॥
मेरी हर भूल को उसी ने पहले पहचाना था।
पर मुसकुराकर उसी ने पहले सुधारा भी था॥
'ढाई अक्षर प्रेम के, ढाई अक्षर के ही शब्द मित्र में समा गए'
मेरी मित्र ने प्रेम को फिर परिभाषित किया।
मेरी मित्र ने जीवन को फिर से प्रवाहित किया॥
Fight on, Move on and hence Live on ...

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