Wednesday 2 September 2009

Trying To Fly High !

Dear blog
This one's a really special poem ... Hope you'll enjoy it ...

मेरी उड़ान

एक युवा उड़ान के दौरान
न जाने कब मेरा यौवन
चहकना भूल गया ...
आज गिर जाने पर
फिर उठ कर, चहकने को मन करता है ।

एक मदमस्त उड़ान के दौरान
न जाने कब मेरा मन
मुस्कुराना भूल गया ...
आज गिर जाने पर
फिर उठ कर , खिलखिलाने को मन करता है ।

एक सुनहरी उड़ान के दौरान
न जाने कब मेरी आँखें
धरा पर फूलों के सौंदर्य को भूल गईं ...
आज गिर जाने पर
फिर उठ कर , फूलों से बतियाने को मन करता है ।

एक अलबेली सुबह की उड़ान के दौरान
न जाने कब ये चिडिया
उस चंदा की चांदनी को मापना भूल गई ...
आज गिर जाने पर
फिर उठ कर , रात के अंधियारे के संग झूमने को मन करता है ।

एक ऊंची उड़ान के दौरान
न जाने कब मेरे ये नन्हे पंख
आसमा में लहराना भूल गए ...
आज गिर जाने पर
फिर उठ कर , इस आसमा में पंख पसारने को मन करता है ।

आसमा से धरा को ताकना ,
और अगले ही पल ,
उसी धरा पर गिर जाना ,
चोट तो लगी है मेरे नन्हे पंखों को ...
दर्द तो हुआ है इस नन्ही चिडिया को ...
पर फिर , अगली उड़ान का मज़ा ही कुछ और होगा !
उस आसमा को फिर मेरे पंखों के सहलाने का एहसास होगा ...
उस चंदा को फिर मेरे आने का इंतज़ार होगा ...
मेरी अगली उड़ान का मज़ा ही कुछ और होगा ...

Fight on, Move on and hence Live on ...

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