Friday 29 January 2010

The Secracy!

Dear blog

Thanks for everything. Though I could never confide in this place, my almost 'secret' world, but I love every bit of it. I was unknowingly reflecting about things and my pen set out on a journey yet again! With due respect to the blessings of my life, I share the following with you :

ज़िन्दगी की लिखावट के बीच
मेरी दास्ताँ भी सिमटती है;
अपने-से लगते इन पन्नो में
कुछ नमी-सी है,
मेरी कहानी के शब्दों में
कुछ कमी-सी है।

रात के अंधियारे के संग
अनकही बातों की गूँज भी ढलती है;
उन बातों में, मेरे ख्वाबों में
कुछ नमी-सी है,
तारों से मिलने की ख्वाहिशों में
कुछ कमी-सी है।

इन पलकों के पार
हजारों एहसास बसते हैं;
उन एहसासों में, मेरे इशारों में
कुछ नमी-सी है,
सपने से भरी आँखों में भी
कुछ कमी-सी है।

सब कुछ थोड़ा-सा धुन्दला तो है,
जिंदगी का रंग-रूप कुछ बदला तो है,
आँखों की नमी से
ज़िन्दगी की कमी तो नम हो जाएगी,
पर उस कमी का क्या
जो उस नमी का ही सारांश है ?

Fight on, Move on and hence Live on ...

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